Sunday, 9 August 2020

क्या आज़ाद हूं मैं?

 आज़ाद हुए कई साल हुए हैं,

पर आज भी आज़ाद नहीं हूं मैं।


सूरज की पहली किरण से,

सूरज की आखिरी रोशनी तक,

आज़ाद नहीं हूं मैं।


शरीर ढाका हो या ना हो,

नज़रों की मोहताज हूं में,

आज भी आज़ाद नहीं हूं मैं।


पूछो उन नज़रों से जो पीछा करती हैं,

पूछो उन लोगो से को घुरा करते हैं,

क्या आज़ाद हूं मैं?


घर के अंदर भी बंदिश हैं,

बाहर तो अलग ही रंजिश हैं,

तो क्या आज़ाद हूं मैं?


फुक फुक कर कदम रखती हूं,

अंधेरे में घर से निकलने से डरती हूं,

क्या ये हैं मेरी आज़ादी?


कुछ गलत हो तो दोष मेरा हैं,

छोटे कपड़ों से तो आकर्षण बढ़ता है,

अगर आज भी ये सुन ने को मिल रहा है, 

तो क्या आज़ाद हूं मैं?



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