Tuesday 19 December 2017

शायद



शायद तुम वो नहीं
वही जिस से मैं मुख़्तसर थी 

वही जिसके जज़्ज़्बात मैं कभी समझती थी

और शायद वो मेरे

पर शायद अब तुम वो नहीं।


शायद ये वक़्त का तक़ाज़ा हैं

या फिर हमारा फँसाना

या फिर एक उनकही कहानी

पर शायद अब तुम वो नहीं ।


अचानक अपने बचपने मैं सिमट जाना

और ना जाने कितनी उनकही कहानिया सुनाना

अधूरी कहानी छोर के मन ही मन मुस्कुराना 

और ना जाने फिर कितने ही ख़्वाब बुन ना
पर शायद अब तुम वो नहीं।

वक़्त बेवक्त अपनी नवाज़िशे करना
हर सेहर एक नए रंग मैं रम जाना
ख्वाहिशो  की भरमार रखना
पूरी होने पर ख़ुद पर नाज़ करना
पर शायद अब तुम वो नहीं।

मेरे नम आँखो का इंतज़ार थे तुम
मेरे दिल मैं धड़कता प्यार थे तुम
लफ़्ज़ों से जो बायाँ ना हो
वो एहसास थे तुम
पर शायद अब तुम वो नहीं

और अब शायद मैं भी वो नहीं।

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