Sunday, 21 April 2019

फर्क

उसका अंश मुझमें हैं,
उसका अंश तुझमें भी हैं।
तेरा जब लहू बेहता हैं,
तो मेरे क्रोध बड़ता हैं ।
माना सरहदों का दायरा हैं,
पर मिट्टी से तू भी बना हैं और मैं भी।

रियारासत  की लड़ाई ने तुझे अलग किया था ,
और अब ये रिसासत मुझे तोड़ रही हैं ।
अकबर भी देख के हस्ता होगा,
आज के औरंगजेबो पर तरसता होगा।
तू भी शांति चाहता है और मैं भी।

बस फर्क ये हैं कि तू गीता के सार मैं हैं और मैं कुरान कि सुराह मैं।

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