यूं तो मैं हस्ती हूं
खुद पर नहीं ज़िन्दगी पर तरसती हूं।
कितने लम्हे जी चुके हैं इसने,
कैद में करना मुश्किल होगा हैं इन्हे।
अजीब यादों का सिलसिला चलता हैं,
कभी रोज़ तो कभी शायद मुझे तुमसे मुख्तसर करता है।
ये कैसी कशमकश में अगई हैं ज़िन्दगी,
की अब इसे तेरे इख्तियार से भी दर लगता है।
कहते हैं यादों के साए में ज़िन्दगी बीत जाती है,
ग़लत कहते है क्यूंकि ज़िन्दगी तो जी जाती हैं।
आज भी उस और जाके जीने की चाह है,
पर आगे चलके ना कोई मंजिल हैं ना कोई राह ।
खुद पर नहीं ज़िन्दगी पर तरसती हूं।
कितने लम्हे जी चुके हैं इसने,
कैद में करना मुश्किल होगा हैं इन्हे।
अजीब यादों का सिलसिला चलता हैं,
कभी रोज़ तो कभी शायद मुझे तुमसे मुख्तसर करता है।
ये कैसी कशमकश में अगई हैं ज़िन्दगी,
की अब इसे तेरे इख्तियार से भी दर लगता है।
कहते हैं यादों के साए में ज़िन्दगी बीत जाती है,
ग़लत कहते है क्यूंकि ज़िन्दगी तो जी जाती हैं।
आज भी उस और जाके जीने की चाह है,
पर आगे चलके ना कोई मंजिल हैं ना कोई राह ।
No comments:
Post a Comment